आज के वचन पर आत्मचिंतन...
क्या आपको आसन लगता है कि जिनका धार्मिक अनुष्ठानों का जरूरी होता है उन लोगों की जरुरातोंको सेवा से बदलना आसान है?मुझे पता है कि मैं करता हूँ!परन्तु परमेश्वर चाहता है कि हम उनके बारे में बात करने और उसके कर्मों का जश्न मनाने में इतने फंस गए न हो कि हम भूल जाते हैं कि हम दूसरों की देखभाल करते हैं जैसे वह करता है।चाहे वह यीशु लुका 4: 18-19 में उसकी सेवा को परिभाषित करता है या याकूब परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली धर्मात्मा के बारे में बात करता है (याकूब १:२६-२७), हमें सच्चा विश्वास का एहसास होना चाहिए कि परमेश्वर के रूप में दूसरों के साथ व्यवहार करना है।आज की वचन इस बात को परिभाषित करती है कि परमेश्वर क्या करता है और हमें उसी तरीके से रहने के लिए क्या निर्देश देता है।
Thoughts on Today's Verse...
Do you find it easy to replace service to those in need with religious rituals? I know I do! But God wants us to not get so caught up in talking about him and celebrating his deeds, that we forget we're suppose to care for others like he does. Whether it is Jesus defining his ministry in Luke 4:18-19 or James talking about the kind of piety that pleases God (Jas. 1:26-27), we must realize true faith is treating others as God would. Today's verse defines what God does and instructs us to live in the same way.
मेरी प्रार्थना...
हे सभी सुखों के महान परमेश्वर, आज मेरी आँखें खोलो उन लोगों को देखने के लिए जो आपके प्यार की आवश्यकता है और मुझे ध्यान, समय, और उनकी सेवा करने के लिए करुणा दे। आज मेरी जीवन में यिशु का कार्य देखा जा सके। अमिन!
My Prayer...
O Great God of all comfort, open my eyes today to see those who need your love and give me the attentiveness, time, and compassion to serve them. May Jesus' work be seen in my life today. Amen.