आज के वचन पर आत्मचिंतन...

आम तौरपे मैं जनना को तेज़ गतिसे पढता हूँ (बाइबिल में की वंशावली ) लेकिन, आज कुछ समय पीछे जाते है और मत्ति १ :१-१७ पढ़ते है और परमेश्वर के प्रेम, दया और विश्वास्योयता को समर्ण करते है जो उसने इन पीढ़ीयो के प्रति लगातार की, लेकिन , इनमेसे हर एक पीढ़ी को आशीषित किया और इनका पोषण भी किया। जैसे उसने अतीत में भी किया, इससे भी और अधिक परमेश्वर आनेवाले दिनों में करेगा,जब उसका पुत्र और हमारा उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह जिसके महिमामय दुबारा आगमन की हम सब बाट जोह रहे है आएगा।

मेरी प्रार्थना...

बदलाव और अविश्वसनीय इस संसार में , निश्चित, स्थिर और विश्वासयोग्य बने रहने के लिये, धन्यवाद् प्रिय पिता। जब हर कोई मेरा फ़ायदा लेना चाहता है या मुझसे कुछ पाना चाहता है ऐसे समय में अपने मुझे निरंतर और बार बार कई आशीष दिए इसलिए, प्रिय पिता, मैं धन्यवाद् करता हूँ। पहाड़ो से भी अधिक स्थाई बने रहने के लिए और सबसे अधिक सुंदर सूयौदय से भी अधिक महिमामय होने के लिए धन्यवाद। येशु के नाम से, जो आपका पुत्र है और मेरी महिमा है। अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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