आज के वचन पर आत्मचिंतन...
हम गाते हैं और हम सबके सामने कहते हैं की :"परमेश्वर पिता,आपसे हम प्रेम करते है." लेकिन गौर से हमारे वचन की पेहली वाक्यांश को देखो,"हे प्रभु,मै आपसे प्रेम करता हूँ..." इस वाक्य को चाहे सार्वजानिक स्थानों में, सामाजिक आराधना में, हमे परमेश्वर के प्रति व्येक्तिगत प्रेम का भाव करना सिखाया गया है.पिछले बार कब आपने ब्रह्माण्ड की सृष्टीकर्त्ता को आपने कहा है की" में आपसे प्रेम करता हूँ."
मेरी प्रार्थना...
हे स्वर्गीय पिता,में आपसे प्रेम करता हूँ. में आपसे प्रेम करता हूँ क्यूंकि आप मेरे प्रेम से भी ज्यादा योग्य है.में आपसे प्रेम करता हूँ क्यूंकि आपने मुझसे पहले प्रेम किया है.में आपसे प्रेम करता हूँ क्यूंकि आपने अपने पुत्र को मेरे बड़े भाई के रूप में भेजा है और आपके परिवार में मेरी दत्त करने कि मूल्य को चुकाया है.