आज के वचन पर आत्मचिंतन...

हम गाते हैं और हम सबके सामने कहते हैं की :"परमेश्वर पिता,आपसे हम प्रेम करते है." लेकिन गौर से हमारे वचन की पेहली वाक्यांश को देखो,"हे प्रभु,मै आपसे प्रेम करता हूँ..." इस वाक्य को चाहे सार्वजानिक स्थानों में, सामाजिक आराधना में, हमे परमेश्वर के प्रति व्येक्तिगत प्रेम का भाव करना सिखाया गया है.पिछले बार कब आपने ब्रह्माण्ड की सृष्टीकर्त्ता को आपने कहा है की" में आपसे प्रेम करता हूँ."

Thoughts on Today's Verse...

We sing it and we say it in our public prayers: "Father, God, we love you." But notice very carefully the beginning phrase of our verse. "I love you, O Lord..." Even in public, community worship, we are taught the importance of a personal expression of love to God. When is the last time you told the Creator of the universe, "I love you!"

मेरी प्रार्थना...

हे स्वर्गीय पिता,में आपसे प्रेम करता हूँ. में आपसे प्रेम करता हूँ क्यूंकि आप मेरे प्रेम से भी ज्यादा योग्य है.में आपसे प्रेम करता हूँ क्यूंकि आपने मुझसे पहले प्रेम किया है.में आपसे प्रेम करता हूँ क्यूंकि आपने अपने पुत्र को मेरे बड़े भाई के रूप में भेजा है और आपके परिवार में मेरी दत्त करने कि मूल्य को चुकाया है.

My Prayer...

Father in heaven, I love you. I love you because you are more than worthy of my love. I love you because you have first loved me. I love you because you sent your son to be my big brother and pay the price for my adoption into your family. I love you because of your faithfulness. I love you because you have permitted me in your grace to love you. In the name of Jesus I thank you. Amen.

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

Today's Verse Illustrated


Inspirational illustration of भजन संहिता 18:1-2

टिप्पणियाँ