आज के वचन पर आत्मचिंतन...
नफरत — क्या ही साहसिक और सामर्थी शब्द है । हमे लोगों से नफरत नहीं करनी चाहिए। हमे दुष्टता से नफरत करनी चाहिए। कठिन संचय करने में पर बहुत ही जरुरी । दुष्टता यहाँ दुष्ट के कारन हैं — जो नफरत, झूठ और मृत्युं में सुरमा । तो जब दुष्टता अपना गन्दा सिर उठाये, तो आओं हियाव बंधे और शैतान और उसके कामों का विरोध करे । तो आओं हम इस प्रक्रिया में ,जो उसके शिकंजे में फसे हैं चाहे वे हमें अपना दुश्मन ही समझते हो उनके लिए प्रार्थना करे।
मेरी प्रार्थना...
सर्वसामर्थी परमेश्वर, मेरे इस संसार में हो रहे दुष्टता के कारण मेरे हृदय में दर्द होने दे। तेरी इच्छा और चरित्र के विरुद्ध उठनेवाली बातों के प्रति मुझे घृणा दे । फिरभी पिता, जिस तरह आपने मुझे अपने अनुग्रह से छुड़ाया और जब मैं पाप के बंधन में था तो बचाया, मुझे हियाव दे की मैं भी उनका धयान रख सकू जो उस दुष्ट के जकड में हैं । मेरे उधारकर्ता के द्वारा मांगता हूँ।आमीन।