आज के वचन पर आत्मचिंतन...

जबकि पाप और मृत्यु दवारा आघात किये जाने के बाउजूद भी हम मनुष्य अब भी परमेश्वर के सवरूप में रचे गएँ हैं और उसकी परम देख भाल में अपने माँ की कोख में बनाए गए हैं। पर हम अपने कमजोरियों और असफलताओं की कठोर वास्तविक्ता से टकरा जाते हैं। हम परमेश्वर की तरह नहीं हो सकते जिससे की सर्वाधिक पहचाना जाता हैं, पवित्र। हम पाप करते हैं। हम विद्रोह करते हैं। हम असफल होते हैं। हम वो करते हैं जो हम जानते हैं की हमे नहीं करना चाहियें। हम परमेश्वर की इच्छा के महत्व को नजरअंदाज करते हैं और जो महत्व नहीं उस पर ध्यान देते हैं। अपने शब्दों से हम उनको चोट और दुःख पोहचाते हैं जिनसे हम प्रेम करते हैं। कौन हैं जो हमे इन कटु और सिमित वास्तविकताओं से बचा सकता हैं जो हम अपने आप में पते हैं? स्तुति और हालेलुयाह येशु को मिले, जब हम उस पर भरोसा रखते हैं अपना मसीहा और प्रभु मानकर, यद्यपि फिर वह हमे इन दुष्टाता से बचता हैं और हम दूसरों के प्रति और परमेश्वर के प्रति आशीषमय जीवन जीने के लिए तैयार करता हैं।

मेरी प्रार्थना...

स्तुति और आदर के योग्य हो आप सर्वोच्या परमेश्वर।आप सामर्थी हो, पवित्र हो और तुलना से परे हो। आपको हमारे आपके बच्चों के प्रति प्रेमी, उदार, दयालु, क्षमायापी, और कोमल होने के लिए भी चुना गया है। जिस प्रकार के ईशवर होने के लिए आपको चुना गया हैं उस तरह के होने के लिए धन्यवाद् परमेश्वर। येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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