आज के वचन पर आत्मचिंतन...
शब्द सामर्थी है। संवाद करने वाले इसे जानते हैं। मध्यस्थी इसे जानते हैं। दिल में कहीं तुम भी इसे जानते हो। शब्दों ने तुम्हे आशीषित किया हैं और शब्दों ने तुम्हे तबाह भी किया हैं। दयालु और स्नेह भरे शब्दों से जो चंगाई मिलती है वह मूल्यवान हैं। क्रूर ताने से होने वाले तभाही से और बढ़िया से बताया हुआ धोका तीव्र चोटिल होता हैं। इस तरह की शक्ति होना यह अध्भुत हैं। इस अध्भुत शक्ति को उपयोग करना जो हमारी बातों में पायी जाती हैं यह अध्भुत जिम्मेदारी हैं। शब्दों में जीवन देने की, आशा देने की और शांति देने की शक्ति हैं जब प्रेम से येशु को आदर देने के लिए इस्तेमाल किया जाए। वह शब्द को आज बोलते हैं !
मेरी प्रार्थना...
हे पिता, मैं चाहता हूं की आज मेरे शब्द आशिष के हो। मैं चाहता हूं की वे आपके अनुग्रह का प्रतिबिम्भ हो। मैं चाहता हूं की जो चोटिल हैं वे उनके लिए चंगाई और जो दुखी हैं उनके लिए समाधान के हो। मैं चाहता हूं, जो टूटे हुए हैं उनके लिए कोमलता के हो। मैं चाहता हूं की कठिन परिस्तिथियों में वे आदरणीय और सत्य के हो। मैं चाहता हूं की वे न्यायी हो जब मेरे आसपास की भाषा अश्लील हो। अपनी आत्मा के द्वारा मेरी बातों को इस्तेमाल करें की वे दूसरों के लिए आशीष और आपके प्रति स्तुति की हो, येशु के नाम से जो सर्वश्रेष्ठ नाम हैं, प्रार्थना करता हूं। अमिन।