आज के वचन पर आत्मचिंतन...
हम इसे चाहते है की बहुत अधिक हमारा सत्य अंगीकार हो.हम अभी तक सोना नहीं बने हैं पर चाहते हैं । हम अभी तक पूर्णतः उसके पत्थचिन्हों पर नहीं चल रहे हैं पर कोशिश करते हैं। हम उस मार्ग से मुड़ना नहीं चाहते है पर हम चूक जाते हैं। जबतक शिष्यता के प्रति हमारे उद्देश्य और चाहते पूरी नहीं हो जाती, परमेश्वर का उसके अनुग्रह के लिए धन्यवाद हो!
मेरी प्रार्थना...
प्रतापी सृस्टीकर्ता और ब्रम्हांड को बाएं रखने वाले, मैं मेरे पापों को और आपके राहों पे अनुकरण करने में मेरी कमियों को मैं मानता हूँ। मुझे क्षमा कर की अब मैं अपने आपको आपकी सेवा के प्रति समर्पित करता हूँ पवित्रता और आनंद के साथ । धन्यवाद आपके अनुग्रह के लिए जो मेरे पापों को ढाँपता हैं और मुझमे येशु के चरित्रों को सिद्ध करता हैं । यीशु के द्वारा प्रार्थना करता हूँ । अमिन।