आज के वचन पर आत्मचिंतन...
हमने तैयार होने की जरुरत हैं और लोगों को उस आशा के विषय में बताने की जो येशु ने हमारे जीवनों में लाई हैं! परन्तु जब हम यह आशा में भाग लेते हैं, दों बाते महत्वपूर्ण हैं: हमारी विश्वसनीयता — की क्या सच में येशु हमारे हृदय का प्रभु हैं— और हमारा चरित्र — क्या हम सज्जनता और आदर का इस्तेमाल अपने प्रबोधन परसतव में करते हैं । लक्ष्य यह नहीं हैं की बहस जीता जाये बल्कि चरित्र के परमेश्वर के लिए हृदय!
मेरी प्रार्थना...
पवित्र और प्रेमी पिता, धन्यवाद की येशु में आपने अपने को अनुग्रह को बोला। मैं नहीं सोचता की मैंने और कोई सन्देश सूना हो । येशु में मेरी आशा को बाटने की जरुरत के प्रति मुझे कायलता दे, पर इस तरह से की आपका अनुग्रह दिखाई पड़े। मेरी जीवित आशा के द्वारा प्रार्थना करता हूँ । अमिन।