आज के वचन पर आत्मचिंतन...
परमेश्वर के अनुग्रह ने हमे येशु के साथ प्रभु और उधारकर्ता के रूप में एक बचानेवाले सम्बन्ध में लाया है। विश्वासी होने नाते, हम पहचानते है की क्रूस पर येशु कि बलिदान एक भयंकर अन्याय और एक अच्छे और सभ्य व्यक्ति के हत्या से बढ़कर था। येशु परमेश्वर की बुद्धि है, बुद्धि जो हमे परमेश्वर के प्रेम के प्रति कायल करते है। येशु हमारी धार्मिकता है; हमारे पापों को अपने ऊपर लेकर उसने हमे धार्मिक बनाया है। येशु हमारी निरंतरता की पवित्रता है। उसका लहू हमे शुरवात में शुद्ध करता है और आज भी करता है। येशु हमारी पवित्रता है; उसकी मृत्य से हमारी धार्मिकता है। येशु हमारे छुटकारे की कीमत है, हमे पापों से और मृत्यु से छुड़ाता है। येशु हमारा सब कुछ है।
Thoughts on Today's Verse...
God's grace has brought us into a saving relationship with Jesus as our Lord and Savior. As believers, we recognize that Jesus' sacrifice on the Cross was much more than a terrible miscarriage of justice and the murder of a good and decent man. Jesus is God's wisdom, a wisdom to convince us of his love. Jesus is our righteousness; taking our sins upon himself he made us righteous. Jesus is our ongoing holiness. His blood cleanses us at the beginning and continues to do so today. Jesus is our holiness; his death means our righteousness. Jesus is our ransom payment, redeeming us from sin and death. Jesus is our everything!
मेरी प्रार्थना...
सर्वशक्तिमान और अब्बा परमेश्वर, आपकी पवित्रता और धार्मिकता के लिए धन्यवाद। आपके अनुग्रह क्षमा के लिए धन्यवाद। अपने बेटे के दिल की तरह एक दिल मुझमे भी ढालना। आपने राज्य के कार्य के लिये एक उपयोगी पात्र को मुझे बनाये। येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। अमीन।
My Prayer...
Almighty and Abba God, thank you for your holiness and righteousness. Thank you for your gracious forgiveness. Mold in me a heart like your Son's heart. Make from me a more usable vessel for your Kingdom work. In Jesus' name I pray. Amen.