आज के वचन पर आत्मचिंतन...
कई बार किलिसियाओं में होने वाली लड़ाईया निराशाजनक हो सकती है और हमारा ध्यान उन अध्भुत आशीषों से हटा देने का कारन बन जाती है जो हमारे पास परमेश्वर के परिवार में होती है। हमारे पास काफी कारन है की हम प्रभु में आनंदित हो। ऐसे कारणों को नजरअंदाज न करे, विशेष रूपसे जब हमरे आस पास के लोग तुच्छता और दुश्मनी में फसे हो। हम जरूर याद रखे की हमारी आशा उस क्रूस पर लटकनेवाले नज़रेतवासी में है, जो हमारा पुनुरुत्थित प्रभु भी है और हमेशा उपस्थित उद्धारकर्ता है।
मेरी प्रार्थना...
पिता, यीशु को जानने में जो आनंद मुझमे है उसके लिये धन्यवाद। उसके मृत्य और पुनुरुत्थान के द्वारा जो उद्धार आपने मुझे दिया है उसमे मैं आनंदित हूँ। आनंद से मैं उस महा उत्सव के लिये उम्मीद करता हूँ जब वह आपकी महिमा को मेरे साथ बटने के लिये वापस आयेंगे और उनके साथ भी जो सभी उसके वापसी के लिये आशा करते है। यहां तक कि निराशा की मेरी अंधेरमय क्षणों में भी, मैं आशा की लौ के लिए धन्यवाद करता हूँ और जीत की आशा जो मेरे गेहरा और नित्य आनंद जो मुझे आपके सन्तान होने मे मिलता है। उद्धार करता प्रभू यीशु के नाम से मे प्रार्थना मंगता हूँ। आमीन।