आज के वचन पर आत्मचिंतन...
क्या है जो आपके हृदय का बचाव करता है ? और क्या है जो आपके मन की रक्षा करता है ? क्या आप जानते हो की परमेश्वर की शांति हमारे हृदय और मन का बचाव करती है ? यही प्रेरित पौलुस का वादा है हमारे लिए इस कथन में। यदि हम हमारी विनंतीया धन्यवाद् के साथ परमेष्वर को प्रस्तुत करे, तो परमेश्वर की शांति जो किसी भी समझ से महान है और हमारे समझने की योग्यता को बढ़ाता है, यह हमारे हृदय और मन की पहरेदारी करता है। आपको इस बात का उद्धरण चाहिए होगा की यह कैसे सत्य है? अय्यूब की पुस्तक देखे। जो कुछ उस पर बिता। जो कुछ उसे जख्मी किये। फिरभी उसने अपने हृदय को कठोर नहीं किया या पागल हुआ । क्या है उसके बने रहने की कुंजी? निरंतर प्रभु के साथ उसकी बातचीत । वह उस सम्बन्ध को नहीं छोड़ेगा चाहे वह कितना भी चोटिल क्यों न हो, चाहे कितना ही क्यों न वह परेशान हो,या कितना ही उसका मज़ाक बनाया जाये।
मेरी प्रार्थना...
पिता,मुझे आपकी शांती चाहिये। ऐसे घाव है जो मेरे दिल में छेदता है, लेकीन मैं नही चाहता हूँ कि वह कठोर हो या घट्टा हो जाये। बहुत बार मेरे मन उलझन में पड जता है और मैं डरता हूँ कि मैं अपने समझदारी खो न दू। प्रिय पिता, मै भरोसा करता हूँ कि जब मैं यीशु को पकड़े हुए हूँ, और जब मैं अपने जीवन और अपने अनुग्रह के बारे में आप के साथ खुलकर बात करता हूँ, कि आप मुझे अपनी शांती से आशिष देंगे और मेरे ह्रदय और मन को विनाश से बचायेंगे। धन्यवाद्, प्रिय पिता, इस बात का समरण दिलाने के लिए की चाहे मैं मुसीबतो से संघर्ष भी करता हूँ, मुझे चाहिए की मैं आपको धन्यवाद दू उन भली वस्तुओ के लिए जिनसे अपने मझे आशीषित किया मेरे जीवन मे और मेरे आपके साथ चलने के दौरान! येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ । अमिन।