आज के वचन पर आत्मचिंतन...

कुछ बाते "प्रमुख महत्व " की बाते होती है । वे तत्त्व के हृदय में वस् करते है और मुद्दे जो हाथो में है उनका केंद्र होते है । हम मसीही होने क नाते हमे उन "प्रमुख महत्व " बातो पर संदेह नहीं करना चाहिए की वे क्या है । हमारे उद्धार के सुसमाचार एक साधाहरण नीव पर बनी है : येशु मारा, येशु गाड़ा गया, येशु कब्र में से जी उठा और अपने चलो को दिखाई दिया जो अपने पुनुरुत्थित उद्धारकर्ता को देखने के बाद फिर कभी पहले जैसे नहीं रहे । आइये हम किसी को इन मूल सत्यो से हमे भटकाने ना दे या फिर न हमे दूसरे बातो की महत्वता में उलझाकर उसकी साधरता को घेरने दे । हमारे उद्धार की जड़ हमारे विश्वास में और हमारी उस साधारण, पर सामर्थी सुसमाचार की सहभागिता में है ।

मेरी प्रार्थना...

प्रिय परमेश्वर , मेरे विश्वास को येशु में आपके कामो का मैं अंगीकार करता हूँ । मैं विश्वास करता हूँ की आपका पुत्र और मेरा उद्धारकर्ता, येशु, दुष्ट लोगो के द्वारा क्रूस पर चढ़ाया गया जैसे आपके वचन में काफी पहले लिखा गया है । मैं विश्वास करता हूँ की उसका मारा हुआ और जीवनरहित देह कब्र में रखा गया था ।मै विश्वास करता हूँ की जैसे आपने वादा किया था तीसरे दिन उसे जीवित कर दिया । मेंविश्वास करता हूँ वे जो उसे बेहतर जानते थे, उसके मरने से दुखी हुए थे, वे ही उसे फिर जीवत भी देखने पाए । मैं विश्वास करता हूँ की उनके जीवन फिर पहले जैसे कभी नहीं रहे । मैं विश्वास करता हूँ , प्रिय पिता, जैसे मैंने येशु पर मेरे विश्वास का अंगीकार किया है और मैं उसके साथ बप्तिसमेँ द्वारा मारा गया, गाढ़ा गया, और पुनुरुत्थित हुआ हूँ , की मेरा जीवन उसके साथ उद्धार और मृत्यु पर विजय का प्राप्त कर थामे हुए है । इस अनुग्रह के लिए आपकी स्तुति करता हूँ । इस आश्वाशन के लिए आपका धन्यवाद्करता हूँ । मैं आपके महिमा में आपके साथ सहभगि होने की बाँट जोहता हूँ की वह वापस आयेंगा । मेरे उद्धार के लिए धन्यवाद् , येशु के नाम से । अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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