आज के वचन पर आत्मचिंतन...

उसने हमारे पापों को ले लिया। ना केवल उसने उन्हें लिया; उसने उस सजा को भी झेला जिसके के हकदार हम थे। उसका दर्द हमारी चंगाई थी। उसकी पीड़ा हमारी धार्मिकता थी । तो कैसे हम यह सोच भी सकते हैं की हम पाप में शामिल हो जबकि उसने हमारे लिए इतना गहरा पीड़ा झेला इसके सजा को करने के लिए ?

मेरी प्रार्थना...

पवित्र परमेश्वर,आप कैसे खड़े हो के देख सकते अपने अनमोल पुत्र मेरे पापों को भोज तले दबे हुए, सब पापों को, मैं यह कभी नहीं समझ पाउँगा । आपके महान प्रेम के लिए धन्यवाद और इतने महान परमेस्वर होने के लिए ।आपकी तुलना में कोई भी नहीं हैं । ऐसा कोई भी नहीं हैं, हे परमेश्वर । आपकी महानता सोच से परेह हैं और आपका प्रेम मेरे स्वप्न से भी परेह हैं । आज मैं आपके महिमा के लिए जीऊंगा येशु के द्वारा जिसने मेरे पापो को अपने कर ले लिए की मैं आपका पुत्र बन सकू । आपके पुत्र के बहुमूल्य नाम से मैं प्रार्थना करता हूँ । आमीन ।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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