आज के वचन पर आत्मचिंतन...
मसीह धर्म अपने आप में मरना होता है।कुछ लोग इसे घृणित,कष्टदायक,और कमजोर मानते हैं."वे आश्चर्य होते है" कि,"क्यू अपनी इच्छाओं को,चाहत को,और लालसा को दुसरो के आदेश के वाजह से छोडना है?.वे सोचते है की,ये गुलामी की तरह लगते है!'हालांकि,वे एहसास नही करते है कि मसीह के लिए हमारी चाहत का आत्मसमर्पण, उडने वाली एक पक्षी जिस तरह हवा के कबु में उडती है और एक मछली जो पानी के अनुसार जीती है।वैसे ही जब हम परमेश्वर को आत्मसमर्पण करते हैं,तो वो हमे जिस कार्य के लिये हम बनाये गये है वैसे बनने के लिये सामर्थ देता है-जो मार्ग अनन्त हैं उसका उपयोग करने लिए समझ देता है.जीवन को मृत्युकारक सीमाओं में सीमित न होने के लिए क्षमता देता है,और हमें पिता अपनी नम्रता के साथ भोजन करने आशीश देता है।मसीह के समर्पण में हम क्या खो जाते है?विद्रोह की वजह से हमारी स्वार्थ और हमारी आत्म-क्षति को केवल खोजते है?।
मेरी प्रार्थना...
पवित्र पिता,यीशु के द्वारा मेरे जीवन में हुए कार्य के लिये धन्यवाद.जैसे आप मुझे अपने बेटे और मुक्तिदाता की तरह और अधिक उनके रूप में बनाते हो,मै विश्वास करता हुँ कि आप मुझे मेरे सोच से भी अधिक रूप मे उपयोग करेंगे.कृपया मेरे दिल को लीजिये और अच्छे से शुद्ध किजीये.कृपया मेरे जीवन को लीजिये और महानता से उपयोग किजीये.कृपया मेरे विचारों को विस्तार किजीये और मुझे आश्चर्य रूप से सपने देखने में मदद किजीये.ये सब मुझमें आपके पुत्र के जीवन से शक्ति प्राप्त हो,और जो कार्य मै करता हुँ,और जो सपने देखता हुँ,और मै इच्छा करता हुँ,की ये सारी चीजे आपकी महिमा के लिए हो.यीशु के नाम से प्रार्थना करता हुँ.आमीन.