आज के वचन पर आत्मचिंतन...
इस वादे के पीछे का असली प्रशन बहुत ही साधारण है : मेरे योजनाओ के लिए सफलता को मै कैसे परिभाषित करू? उत्तर भी बड़ा ही साधारण है : उसके अनुग्रह के लिए परमेश्वर को महिमा पहुचाये (देखे. इफिसियों १:६,१२,१४,) अपने कामो और योजनाओ को परमेश्वर को सौपने का मतलब की हम उन्हें परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पित करे (याकूब ४:१३-१५) , यह भरोसा करते हुए की परमेश्वर इनमें महिमा पाए (कुलुसियो ३:१७), और यह पहचान लेना की यह हमारी ताकत में नहीं की हम अपने मार्गदरसन खुद करे (निति १६:९ )। परमेश्वर हमे आशीषित और हमे समर्थ देना चाहता है — हमारी स्वार्थी इच्छाओ के लिए नहीं (याकूब ३:१६ ), पर हमारे अनंत भलाई के लिए(रोम ८:२८ ) और परमेश्वर की महिमा के लिए। येशु की तरह, जब हम अपने काम और योजनाए प्रभु को सौपते है, तो हम कहते है, "मेरी नहीं वरन तेरी इच्छा पूरी हो!"
मेरी प्रार्थना...
पिता, मै चाहता हूँ तेरी इच्छाए मेरी योजनाए हो। मै चाहता हूँ तेरी महिमा मेरा लक्ष्य हो। काम है जो मै चाहता हूँ की मै करू । फिरभी ,यदि यह योजनाए तेरी महिमा के लिए नहीं, यदि यह योजनाए मेरे परिवार और वे लोग जो मेरे आसपास है जिन्हे मै प्रभावित करता हूँ आशीषित न हो,तो मुझे इन योजनाओ में हरा दे और कृयय मुझे दूसरे अशिक्षित क्षेत्रो में ले चल। मै चाहता हूँ की जो भी मै करू उसमे तू महिमा पाए। जहाँ तेरा अनुग्रह ले जाये मै वहां जाना चाहता हूँ। मै अपने मार्ग, योजनाए और काम तुझे और तेरी महिमा के प्रति सौपता हूँ । येशु के नाम से मैं प्रार्थना करता हूँ । अमिन।