आज के वचन पर आत्मचिंतन...
कभी कभी जो हमे करना होता है वह बहुत ही सरल और साधारण होता है, है न ? मुझे सब से जो मेरे इर्द गिर्द होते है उनसे न्याय से बर्ताव करू -धीरज का अभ्यास करे , ओरो से ईमानदारी , निष्पक्ष्ता से ओर बिना किस भेद भाव से बर्ताव कर सकू । मुझे चाहिए की दया का अभ्यास कर सकू — औरो को आशीषित कर सकू उन वस्तुओ से जिनके वह योग्य नहीं परन्तु अत्यंत आवश्यकता में हो- मुझे अपने अब्बा पिता के साथ नम्रता से चलना होगा — पर इस बात को जानते हुए की बिना उसके अनुग्रह ओर मददत के मै गिर जाऊंगा
Thoughts on Today's Verse...
Sometimes what we need to do is very simple and plain, isn't it? I need to handle those around me justly — practicing patience and dealing with others in fairness, without partiality. I need to practice mercy — blessing others in need with what they don't deserve but so greatly need. I need to walk humbly with my Abba Father — knowing that without his grace and help I will fail.
मेरी प्रार्थना...
पिता, कृपया जो आप मुझे बनाना चाहते से वह मुझे बनना दीजिये । जैसे मुझे आकार दिया , कृपया मुझे आशीषित कर दे की जैसा मै इस खोज में हूँ की मै एक न्याय , दया ओर नम्रता का व्यक्ति बन सकू। येशु के प्रार्थना करते है । आमीन ।
My Prayer...
Father, please make of me what you will. As you fashion me, please bless me as I seek to be a person of justice, mercy, and humility. In Jesus' name I pray. Amen.