आज के वचन पर आत्मचिंतन...
पूरी बाइबिल में यहुन्ना १७ यह प्रभावशाली अध्याय है । येशु जनता है की वह मरनेवाला है ।वह जनता है की वह आखरी कुछ पल अपने चेलो के साथ बिता रहा है जो नाही कुछ जानते है और नाही कुछ समझते है की वो जो करने पर है क्यों करने पर है । येशु के मन में दो मुख्या लक्ष्य है की वह अपने आपको और अपने चेलो को तैयार कर सके की वे बिना उसके आगे का जीवन बिता सके । वह चाहता था की वे एक बने रहे ताकि वे दृढ़ बने रहे और परमेश्वर के लिए इस संसार को प्रभावित कर सके । वह चाहता है की जो कुछ भी वह करे उससे पिता को महिमा मिले। जब वह बेइज्जती और तिरस्कार का सामना कर रहा था , उसकी इच्छा थी की दुसरो को आशीष मिले । हम परीक्षाओ का सामना करने वाले है। हमारा लक्ष्य क्या होगा ? इसमें कोई दो राय नहीं की हमे अपनी आंखे येशु पर रखनी है और उसके उद्धारण पर चलना है ।
मेरी प्रार्थना...
प्यारे पिता, मै आपके दर्द और अनुग्रह के भेद को नहीं जान पाउँगा जो आपके हृदय को छुआ जब येशु क्रूस पर पूरी ईमानदारी और निस्वार्थता के साथ चढ़ा था । प्रभु येशु , मैं आपको जितना धन्यवाद् दू काम है की आपने मेरे लिए प्रभावशाली उद्धारण दिया की जीवन के भरी बोझ को कैसे सामना कर सकू । कृपया मेरे जीवन को दुसरो के लिए आशीष बनिए और मुझे हियाव देने की मैं सेवा कर सकू और आशीष बन सकू चाहे कठिन समय हो । येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ । अमिन ।