आज के वचन पर आत्मचिंतन...

अनुग्रह और स्वतंत्रता पाप करने के लिए अधिकार / छूट पत्र नहीं है (यहूदा ४)। जबकि पाप हमे दस बनाता है ; पाप लतसा है (यहुन्ना ८:३४)। येशु में बपतिस्मे के द्वारा अपने पुराने मनुष्यत्व को पाप के प्रति मारकर और गढ़नेवाले होने के नाते , हमे पाप को अपने उप्पर राज्य नहीं करने देना चाहिए और नाही उसे अपना स्वामी बनने देना चाइये क्योकि हम अनुग्रह से आज़ाद किये गए है (रोमी ६:१-१४)। तो आओ पवित्र आत्मा की समर्थ को ढूंढे की हमे शुद्ध करे (इब्रा ९:१४ ) और सामर्थीरूप से हमे पाप से आज़ाद कर सके (रोमी ८ :१०-१५)। आइये अपनी आज़ादी को दुसरो को आशीषित और निर्माण करने में उपयोग करे । आइये अपनी आज़ादी का उपयोग करे की अपने हृदय और जीवन को परमेश्वर के कार्य के लिए भेट दे सके !

मेरी प्रार्थना...

पवित्र और धर्मी परमेश्वर , मेरे अब्बा पिता, धन्यवाद मुझे दोष से और पाप की समर्थ से छोड़ने के लिए ।कृपया अपनी आत्मा से सामर्थी बना और मुझे बदल की मैं अपना पापमय जीवन पीछे छोड़कर एक चरित्रमय और आशीषमय जीवन अपने परिवार में कार्यस्थल पर और आपके इस संसार में जी सकू । येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ । अमिन ।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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