आज के वचन पर आत्मचिंतन...
परमेश्वर के सामने हमारा असली चरित्र कैसा है, ये कैसे जानें? सिर्फ कलीसिया में या अपने जैसे लोगों के बीच हम कैसे व्यवहार करते हैं, ये काफी नहीं है। हमारी असली परीक्षा, हमारी सच्ची भक्ति, स्वर्ग के पिता के साथ और उनके खोए हुए, भुलाए गए, गिरे हुए, और टूटे हुओं को बचाने के काम में हमारे साझेदारी में मिलती है। वचन कहता है परदेशी* और अनाथ और विधवाओं के लिए - यानी हमारे बीच जो गरीब और लाचार हैं, उनके लिये। जब हम सिर्फ अपने लिये जीते हैं और ज़रूरतमंदों को प्यार, न्याय, और दया दिखाने में पीछे छोड़ देते हैं, तो हमारा समाज टूट जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें परमेश्वर का वो दिल नहीं होता जो बेसहारा और अकेले की परवाह करता है। साथ ही, समाज टूट जाता है क्योंकि ज़रूरतमंद लोग उनसे जलते हैं और द्वेष रखते हैं जिनके पास है और जिनके पास है वो अपने आप को उनसे बेहतर समझने लगते हैं। असली परीक्षा ये है कि हम अपने आसपास ज़रूरतमंद लोगों से कैसा प्यार करते हैं। (*परदेशी - "परदेशी" का मतलब जो व्यक्ति समाज से अलग-थलग हैं या उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है।)
Thoughts on Today's Verse...
What is the most accurate measure of our character? It is not merely how we act "at church" or among other like-minded people. The real test of our character, our true godliness, is found in our partnership with our Father in heaven and his work to redeem the lost, forgotten, downtrodden, and broken — or quite literally in this verse, the "foreigner"* and "fatherless" and "widows" among us. When we live only for ourselves and leave the "have-nots" far behind in our practice of love, justice, and mercy, our culture collapses upon itself because it lacks the heart of God for the outcast and alone; in addition, culture breaks down because the people who are the "have-nots" can become jealous and resentful of those who have and the “haves” can feel superior to those who do not have! The real test of our character is how we love people around us who are in need.
* The NIV 11, rather than our usual NIV 1984, is used for this passage because of the translation of the literal term "resident alien" as "foreigner" by the NIV 11 is deemed closer to our modern usage of these terms.
मेरी प्रार्थना...
हे परमेश्वर, सर्वशक्तिमान और स्वर्ग का राजा, हमें क्षमा करें। हमारी भूमि को चंगा करने के लिए अपने धर्मिक चरित्र, दयालु करुणा, और विश्वासयोग्य प्रेम और न्याय के साथ रहने वाले आपकी सन्तानों का उपयोग करें। हे पिता, मैं विशेष रूप से प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे संकट के समय में जिसके पास जाने वाला कोई नहीं है, ऐसे जरूरतमंद व्यक्ति के लिए आशीष बनने के लिए उपयोग करें। यीशु के नाम में, मैं प्रार्थना करता हूं। आमीन।
My Prayer...
Loving God, the Almighty and Sovereign Lord, please forgive us and use your children who live by your righteous character, gracious compassion, and faithful love and justice to heal our land. Father, I especially pray that you will use me to be a blessing to someone in need with no one to turn to in their times of crisis. In Jesus' name, I pray. Amen.