आज के वचन पर आत्मचिंतन...
स्तुति सम्पूर्ण रूप से हमारे चरित्र से जुडी हुई है। तो हमारे लिए परमेश्वर की आराधना करना, हमारे हृदय का इरादा और जीवन के प्रयास यह निर्धारित करना चाहिए की हम उसकी इच्छा को जानने में और जीने में चाहत रखते हैं। जबकि हम यह कभी भी सिद्धता से नहीं कर पाएंगे, अनुग्रह हम पर्याप्त हैं यदि हम उसकी महिमा के लिए जीने के खोजी हों। परन्तु यह अनुग्रह कभी भी दिखावे के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहियें अपनी आत्मिक आलसीपन या इच्छानुरूप कमजोरिओं को ढापने के लिए।
मेरी प्रार्थना...
पवित्र परमेश्वर, मैं चरित्र में आपकी तरह और अधिक बनना चाहता हूँ बल्कि मैं कभी भी ना तो समर्थ में नहीं गौरव में आपकी तरह हो पाउँगा।मेरी आंखों को खोलियें और आत्मा के द्वारा मुझे ज्योतिर्मय कर जबकि मैं तेरे वचनों में तेरी इच्छा की खोज करता हूँ और यह भी की मैं अपने प्रति दिन के जीवन में आज्ञाकारी बना रहूं। मुझे मेरे पापों से क्षमा कर और एक स्वच्छ और पवित्र हृदय उत्पन कर, पूर्णतः आपकी इच्छा को कर सकने में निर्धारित हो। येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। आमीन।