आज के वचन पर आत्मचिंतन...

"अधीनता" यह शब्द सामन्यतः हमसे उसके व्यक्तिगत सम्बन्ध के आधार पर सकारात्मक या नकारात्मक होता हैं। यह अच्छा होता हैं की कोई अधीनता के साथ हमारी सेवा करे, परन्तु किसी की सेवा अधीनता से करना यह कठिन कार्य होता हैं। असौभाग्यवश हम अधिक समय स्वार्थी होते हैं। परन्तु परमेश्वर सीधे उनके विरूद्ध में कार्य करते हैं जो घमंड से भरे होते हैं और जो दुसरो की सेवा करने में इच्छुक नहीं होते, विशेषकरके यदि "वे दूसरे " पुराने विश्वासी हो! चाहे यह आसान हो या ना हो हमारे पिता की इच्छा यह हैं की हम खुदको नम्रता के पहिरावा पहनाएं।

Thoughts on Today's Verse...

The word "submissive" is often viewed as positive or negative based on our personal experience. It is nice having someone serve us submissively, but serving someone else submissively is hard and sometimes imposing work. Unfortunately, we are selfish way too much of the time and don't like to serve or submit to others. However, God is still in direct opposition to anyone full of pride and unwilling to serve others, especially if those "others" are older believers! Whether it's easy to wear the clothes of a submissive servant — the spiritual clothes our Father wants us to wear voluntarily — we are to intentionally clothe ourselves with humility because "God opposes the proud but gives grace to the humble." Let's live the blessing of submission in our daily lives!

मेरी प्रार्थना...

पिता, वचनों में लिखी हुई विश्वास के महान नायकों की सूचि के लिए बहुत धन्यवाद। विश्वास के उन दूसरे नायकों के लिए भी धन्यवाद जिन्हो ने अपने उदाहरण और जीवन को मुझसे बांटा हैं। उन्हें समर्थ और स्वस्थ से आशीषित कीजिये। पिता, कृपया मुझे इस्तेमाल कर की मैं आपके सभी बच्चों की सेवा और आशीषित कर सकूँ,विशेष करके उनकी जो आपकी विश्वासयोग्यता से सेवकाई में और आपके राज्य में कई वर्ष बिता चुके हैं । यीशु के अनुग्रह से और उसी के नाम से प्रार्थना करता हूँ। अमिन।

My Prayer...

Father, thank you so much for the great heroes of faith listed in Scripture. Thank you for the heroes of faith who served others and demonstrated their love for others through submission as examples to me. Bless them with strength and health. And now, Father, please use me to bless and to serve all of your children, especially those who have lived many years in faithful service to you and your Kingdom. Because of the grace of Jesus, and in his name, I pray. Amen.

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

Today's Verse Illustrated


Inspirational illustration of १ पतरस ५:५

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