आज के वचन पर आत्मचिंतन...
"अधीनता" यह शब्द सामन्यतः हमसे उसके व्यक्तिगत सम्बन्ध के आधार पर सकारात्मक या नकारात्मक होता हैं। यह अच्छा होता हैं की कोई अधीनता के साथ हमारी सेवा करे, परन्तु किसी की सेवा अधीनता से करना यह कठिन कार्य होता हैं। असौभाग्यवश हम अधिक समय स्वार्थी होते हैं। परन्तु परमेश्वर सीधे उनके विरूद्ध में कार्य करते हैं जो घमंड से भरे होते हैं और जो दुसरो की सेवा करने में इच्छुक नहीं होते, विशेषकरके यदि "वे दूसरे " पुराने विश्वासी हो! चाहे यह आसान हो या ना हो हमारे पिता की इच्छा यह हैं की हम खुदको नम्रता के पहिरावा पहनाएं।
मेरी प्रार्थना...
पिता, वचनों में लिखी हुई विश्वास के महान नायकों की सूचि के लिए बहुत धन्यवाद। विश्वास के उन दूसरे नायकों के लिए भी धन्यवाद जिन्हो ने अपने उदाहरण और जीवन को मुझसे बांटा हैं। उन्हें समर्थ और स्वस्थ से आशीषित कीजिये। पिता, कृपया मुझे इस्तेमाल कर की मैं आपके सभी बच्चों की सेवा और आशीषित कर सकूँ,विशेष करके उनकी जो आपकी विश्वासयोग्यता से सेवकाई में और आपके राज्य में कई वर्ष बिता चुके हैं । यीशु के अनुग्रह से और उसी के नाम से प्रार्थना करता हूँ। अमिन।