आज के वचन पर आत्मचिंतन...
मैं परमेश्वर का धन्यवाद देता हूँ पौलुस के आत्मविश्वास के लिए जबकि वह मृत्यु का सामना कर रहा था। वह सबकुछ हैं परन्तु तीरस्कारित नहीं और कलीसिया के भविष्य के लिए चिंतित हैं, परन्तु वह दो बाते जनता हैं: उसने परमेश्वर की सेवा विश्वासयोग्यता से किया और यह की प्रभु उसे ग्रहण करेंगे जब वह मर जाएंगा ! क्या यह दोनों हमारे जीवन के सर्वाधिक लक्ष्य नहीं होने चाहियें ? तो यदि यह हमारे लक्ष्य हैं, हम कैसे जीते हैं प्रत्येक दिन उन्हें पूरा करने के लिए?
मेरी प्रार्थना...
विश्वासयोग्य और प्रेमी परमेश्वर, आपने मुझे अपने अनुग्रह से मुझे बहुतायत से उद्धार की आशीष दिया हैं । कृपया कभी कभी मुझे उस अनुग्रह के बहुतायत से हटा के मजबूत बना । मैं कई दफा अपने विश्वासयोग्यता में कमजोर पड़ जाता हूँ और डगमगा जाता हूँ। मैं जनता हूँ की आपका अनुग्रह उदार हैं, लेकिन मैं उसके प्रति ढिठाई नहीं करना चाहता और गैरइस्तेमाल नहीं करना चाहता। मुझे हियाव और शक्ति दे की विश्वासयोग्यता से और जोश से आपके लिए जी सकूँ जब तक आपका चेहरा आमने सामने नहीं देख लेता, और आपके महिमा और जीत को आपके साथ बाटता नहीं । येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। अमिन ।