आज के वचन पर आत्मचिंतन...
अनुशासन, यहां तक कि जब यह सज़ा के साथ गलत तरीके से उलझन में नहीं है, तो इसे, परेशान करने वाला, और अनावश्यक माना जाता है|हमारे जीवन का आलसी और पापमय भाग कभी कोई सीमा में बंधकर रहना नहीं चाहता, भले ही वे अच्छे हों, और कोई दिशा नहीं क्योंकि यह जो हम करना चाहते हैं उसके साथ संघर्ष हो सकता है| परन्तु परमेश्वर हमे अपने प्रेम के साथ अनुशासित करते है आशीष देने के लिए|यह उसकी खुशी का चिन्ह है|क्यों? क्योकि वह हमें बिना बदलाव, अप्रेरित, स्वार्थरहित नहीं छोड़ना चाहता|वह हमें अपने लक्ष्य के नजदीक लेजाना चाहता है : येशु!
मेरी प्रार्थना...
मेरे धर्मी पिता, मैं ये अंगीकार करता हु की मुझे अनुशासित जीवन इतना पसंद नही है| पिता, जो भी हो, ह्रदय की गहराइ से मैं ये जनता हु की आपका अनुशासन मेरी आत्मिक अशिशो के लिए अच्छा है|कृपया मेरी मदत करे ताकि मैं परिस्थितियों को अच्छे से जानकर और अधिक येशु के सामान बन सकूँ जिसके नाम से इस प्रार्थना मांगता हूँ| आमीन!