आज के वचन पर आत्मचिंतन...

हम पर सांत्वना हुई क्योकि हमारा दिल टुटा था । हमे सांत्वना मिली क्योंकी हमे आशीष की जरुरत थी। हमे सांत्वना मिली की हम औरो को सांत्वना दे सके। जबकि हरएक कथन ऊपर के सत्य है, जो आखरी वाला है बहुत ही महत्वपूर्ण है । उस सांत्वना के विषय में कुछ तो बात है जो पूर्णतः महसूस नहीं होती जबतक वह औरो से बाटी नहीं जाती । यह वो अंतिम कदम है शोक, निराशा, चोट और नुकसान के चंगाई प्रक्रिया में । जब तक हम उस सान्तवना को औरो से बाटते जो हमने पाया, जबतक हम दुसरो तक यह पंहुचा नहीं देते, हमारी सांत्वना कमजोर और उथली और सीमीत है । सांत्वना- औरो को भी दो !

मेरी प्रार्थना...

हे प्रभु, स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्वर, विश्व के रचिता, धन्यवाद् की तूने मेरे दिल को जाना , मेरी चिंताओं के विषय में सोचने के लिए और जब मैं घायल होता अपने मुझे सांत्वना । अपने अनुग्रह, दया और सांत्वना से किसी को आज बाटने में। येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ । आमीन ।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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