आज के वचन पर आत्मचिंतन...
हम पर सांत्वना हुई क्योकि हमारा दिल टुटा था । हमे सांत्वना मिली क्योंकी हमे आशीष की जरुरत थी। हमे सांत्वना मिली की हम औरो को सांत्वना दे सके। जबकि हरएक कथन ऊपर के सत्य है, जो आखरी वाला है बहुत ही महत्वपूर्ण है । उस सांत्वना के विषय में कुछ तो बात है जो पूर्णतः महसूस नहीं होती जबतक वह औरो से बाटी नहीं जाती । यह वो अंतिम कदम है शोक, निराशा, चोट और नुकसान के चंगाई प्रक्रिया में । जब तक हम उस सान्तवना को औरो से बाटते जो हमने पाया, जबतक हम दुसरो तक यह पंहुचा नहीं देते, हमारी सांत्वना कमजोर और उथली और सीमीत है । सांत्वना- औरो को भी दो !
Thoughts on Today's Verse...
We are comforted because we are heartbroken. We are comforted because we need a blessing. We are comforted because God loves us. We are comforted to comfort others. While each of the above statements is true, the last is the most crucial one. There is something about comfort that cannot be fully realized until it is shared with someone else. It is that final step in the healing process of grief, disappointment, hurt, and loss. Until we share the comfort we have received, until we pass it on to another, our comfort is weak and shallow and limited. Comfort — pass it on!
मेरी प्रार्थना...
हे प्रभु, स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्वर, विश्व के रचिता, धन्यवाद् की तूने मेरे दिल को जाना , मेरी चिंताओं के विषय में सोचने के लिए और जब मैं घायल होता अपने मुझे सांत्वना । अपने अनुग्रह, दया और सांत्वना से किसी को आज बाटने में। येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ । आमीन ।
My Prayer...
O Lord, God of heaven and earth, Creator of the universe, thank you for knowing my heart, caring about my concerns, and comforting me when I am wounded. Help me to share your grace, mercy, and comfort with someone else today. In Jesus' name I pray. Amen.