आज के वचन पर आत्मचिंतन...
यीशु के वचन बहुत सामर्थी है, उसके जोर देने का कारण यह है, की मसीहीयों को यह एहसास होना ज़रूरी है, की वे लोग कोई मुख्य संस्कृति नहीं बनने जा रहे है | चेलापन कठिन और अभियाचना भरा हो सकता है, बहुत से लोग तो साधारण और बहुत आसान चीजे चाहते है, लेकिन चेले जिन मूल्यों को अपने जीवन में धारण करने के लिए बुलाये गए है, वे मुख्य संस्कृति नहीं होने जा रहे है | "अतः तैयार हो जाइए!" यीशु हमसे कह रहे हैं | "आलोचना और अस्वीकार का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ" | लेकिन जब हम यह जानते है, की यह पुरुषों और स्त्रियों के हृदयों को परिवर्तन करने के लिए एक कठिन लड़ाई हो सकती है, तो हम दूसरों को प्रभु के और करीब लाने और आशीष देने के लिए परमेश्वर का औजार बन सकते है एवं यात्रा के अंत में उद्धार अपनी सम्पूर्ण महिमा में हमारा इंतजार करती है |
मेरी प्रार्थना...
प्रिय पिता, कृपया आप मुझे क्षमा करें, उन प्रत्येक समय के लिए जिनमें मैं चारो ओर की दुनिया के साथ अधीर सा हो गया, और आपकी अनुग्रह के लक्ष्य की तरह न देख एक शत्रु की तरह देखा | कृपया आप मुझे बुद्धि और साहस प्रदान करें की मैं संसार को छुटकरा दिलाने के लिए आपकी सहनशक्ति के साथ संसार से अपनी समझ संतुलित करुँ | यीशु के नाम से प्रार्थना करता हुँ | आमीन।