आज के वचन पर आत्मचिंतन...
जो युद्ध का हम सामना कर रहे है वह शारीरिक नहीं है । बल्कि शक्तियों की जो हम आसानी से नहीं देख सकते है और जो बहुत शक्तिशाली है का आत्मिक युद्ध है । हमे इसे काल्पनिक युद्ध या बेतुके संघर्ष की तरह ख़ारिज नहीं करना चाहिए । जिस तरह शैतान स्पष्ट तौर पर केन के दरवाज़े पर दुबका था, उसको पाने की चाह में, उसी तरह वह आज हमारे दरवाज़े पर दुबकता है (उत्त्पत्ति ४:७)। जो वह कर सकता वह सब करेंगा अपनी सारी दुष्टता की ताकत का उपयोग करेंगा की, हमे हराएँ, नाश करे, और दूषित करे । हमे इस युद्ध को गंभीरता से लेना होगा और अपने शत्रु के आत्मिक शक्तियों को पहचाना होगा ।
Thoughts on Today's Verse...
The battle we face is not a physical one. Instead, it is a spiritual battle with powers that we do not easily see and which are very powerful. We shouldn't dismiss this as an imaginary battle or as an irrelevant struggle. Just as clearly as Satan was crouching at Cain's door, desiring to have him, so he crouches at our door (Genesis 4:7). He will use his forces of evil to do all he can to defeat, destroy, or corrupt us. We must take this war seriously and recognize the spiritual power of our foe.
मेरी प्रार्थना...
पिता, मुझे क्षमा कर की जब मैंने दुष्ट की चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया । जो कुछ अपवित्र और तेरे कार्यों और इच्छा के विरुद्ध बंधा हो के प्रति मुझे एक पवित्र घृणा दे । मुझे किसी भी लालसाओं से धोखा न खाने दे और हर प्रकार की दुष्ट की शक्तियों से मुझे बचा । येशु के सामर्थी नाम से प्रार्थना करता हूँ । आमीन।
My Prayer...
Father, forgive me for the times I have not taken the threat of evil seriously. Give me a holy revulsion for anything that is tied to what is unholy and opposed to your work and will. Let me not be deceived by temptation and deliver me from the power of the evil one in all of his forms. In the mighty name of Jesus I pray. Amen.