आज के वचन पर आत्मचिंतन...
मैं सोचता हूँ की हम इसे शिष्यता की निंदा कह सकते हैं । मसीह के पीछे चलने का मतलब सब कुछ त्याग कर उसके पीछे हो लेना हैं । मसीह के पीछे चलने का मतलब हैं की हमे अनकही आशीषें मिले इस जीवन में और परमेश्वर के साथ अनंत जीवन में जो आनेवाला हैं। तो क्या यह आसान हैं ? हाँ कभी कभी होता हैं । परन्तु जीवन कठिन हैं । क्या बोझा हल्का हैं जैसे की येशु ने वादा किया था ? हाँ क्योकि हम जानते हैं की हमारा जीवन व्यर्थ नहीं जिया गया, की हम जीवन जैसे परमेश्वर चाहता हैं जी रहे हैं और जब जीवन ख़त्म होता हैं, वास्तम में ख़त्म नहीं होता हैं ! हमे अपने घर जाने का और अपने प्रभु के साथ होने का अवसर मिलता हैं!
मेरी प्रार्थना...
मुझे हियाव दे, हे परमेश्वर, की जो चुनौतियाँ मुझे सामना करना हो उनका समाना कर सकू। मुझे दया दे की जिनसे मैं मिलता हूँ उनसे सही रीती से मिल सकू । जो कुछ अपने आशीष के तौर पर मेरे लिए किया हैं, मुझे धन्यवादीपन दे । मुझे स्पष्टता दे की मैं यह देख सकू की येशु के जीना यह निर्णय सब निर्णयों में उत्तम हैं । प्रभु येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। आमीन।