आज के वचन पर आत्मचिंतन...
दूसरों के प्रति आलोचक होना यह काफी आसान होता हैं । हम उनके संघर्ष नहीं जानते हैं । हम उनकी परिस्तिथियाँ नहीं जानते हैं । सबसे बढ़कर हम उनके हृदयों को नहीं जानते हैं । जब हम आलोचक होते हैं हम दूसरों के और अपने बिच में एक दीवार उठाते हैं । हम अधिकतर वही आलोचनात्मक प्रभाव दूसरों पर बकवाद चर्चों के द्वारा डालते हैं । हमारा जिद्दीपन की हम उन्हें उस आलोचनात्मक आत्मा से देखे एक दीवार कड़ी करती हैं, एक रूकावट, जो उन्हें निराश होने का और गिरने का कारन बन जाता हैं ।
मेरी प्रार्थना...
पिता मैं आपसे मांगता हूँ की मेरे व्यहवार दूसरों के प्रति हैं को अपने उद्धारक अनुग्रह जो आपका उनके प्रति हैं के साथ मेल खाये पुष्टि करे ।औरों की गलतियों में मैं और अधिक धीरजवन्त होना चाहता हूँ , ठीक वैसे ही जैसे आप मेरे साथ धीरजवन्त होते हैं ।मुझे क्षमा करे की मैं और अधिक उत्त्साहित करने वाला न बना जो कमजोर हैं और संघर्ष कर रहे हैं और उनके लिए आशीष बनु ऐसे रास्तों के प्रति मेरे आंखों खोल । जब मैं दूसरों के लिए रूकावट बना उन क्षणों के लिए मुझे क्षमा करे और मेरे हृदय को खोल की आपकी आशीषों को उनके साथ बाँट सकू । मुझे कृपया इस्तेमाल कर की मैं अनुग्रह का पात्र बन सकू । येशु के नाम से । आमीन ।